Jeevan Ki Roti
Jeevan Ki Roti

Jeevan Ki Roti

मांगा मैंने एक निवाला
मांगी मैंने एक रोटी
परोसा उसने मेरे संतानों
के थाली में सोना और चांदी

कोशिश की बहुतों ने
छीनने की मेरे मुंह से निवाला
करती है वास मेरे अंदर
जीवन की रोटी
मरूंगा मैं भूखा फिर कैसे भला?

उक़ाब के संतान के समान
पसारा मैंने अपना मुंह
भर दिया मेरे परमेश्वर ने उसे
अपने महिमा और प्रताप
के हिसाब से

फिर क्यों न गाये मेरा मुंह
उस भले पिता की स्तुति?
फिर क्यों न उठे
मेरे उपार्जन करने वाले हांथ
उस राजाओं का राजा के आदर में?

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